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Wednesday, 19 December 2012

वृक्षारोह,


चीशें
मंत्रीजी की सबसे छोटी संतान
एक दो साल की बच्ची है .
विश्वविद्यालय का लम्बा छात्र
एक ऊंचे वृक्ष सा लगता है
चीशें को .
उसकी टाँगे हैं वृक्ष का तना,
और उसकी बाहें ,- शाखाएं !
चढ़ते हुए ऊपर और ऊपर
जब तक पहुँचती है वह शीर्ष तक .
हम देखते हैं उसे थाम साँसे,
वह उतरती है भाई से नीचे
टाँगे लिपटाये
और हम सब बजाते हैं ताली .
चीशें की आँखों से झलकता है -
वृक्ष पर चढ़ना आसन हैं उसके लिए
यह इश्वर का वरदान है !


शून्य






आगे वाला मकान तोड़ दिया गया .
तीस वर्षों का इतिहास होगया धूल धूसरित
कुछ भी शेष नहीं है
बस रह गया है शून्य .
मैं देख सकती हूँ आधारभूमि
अपने दूसरे तल के दालान से
मैं देखती हूँ -
पश्चिमी आकाश विस्तृत है
कुछ नहीं करता अवरुद्ध मेरी दृष्टि
नीले आकाश तक
ब्रह्मांड लगता है कुछ और निकट
कुछ भी नहीं है कृत्रिम धरती पर
शून्य सर्व श्रेष्ठ है !
शून्य अंत है और आरम्भ भी.

श्वेत साईंक्लामें






श्वेत साईंक्लामें के फूल एक गमले में,
समर्पित मेरी बहन की आत्मा को
मेरे परम प्रिय मित्र की ओर से .
तने के छोर पर
एक कलिका
जैसे की चोंच शिशु पक्षी की .
ताकती है नीचे और
लगती है खिलने .
मार्च के महीने में
धूप भरे आँगन में
श्वेत साईंक्लामें के फूल
देखता है एक शिशु पक्षी
उड़ता ऊपर
लुकाट के पेड़ से .
काश में उगा पाती पंख !
आकाश में
उस पक्षी की तरह .
श्वेत साईंक्लामें का फूल
पसारता है अपनी पंखुडियां
और बस उड़ने जा रहा है.

सन्देश मेरुदंड का



मेरे योग शिक्षक का सूत्र !
सीधे पेट के बल लेट
बाहें बांधे माथे पर
मैं घुमती हूँ दायें -बाएं !
मेरुदंड से आती झनकार
जब ये घुमती है फर्श पर !
बाहें बांधे छाती पर
मैं घुमती हूँ दायें -बाएं .
मुझे सचमुच महसूस होती है उपस्थिति
मेरुदंड की !

समवेत गायन






हम गा रहे हैं भजन संख्या ३१२
मैं हूँ विद्यार्थी
छोटा भाई है शिक्षक हमारा !
हाल ही में संगीत अकादमी से स्नातक ,
वह प्रोत्साहित करता है हमें अलापने को स्वर
स्वर और ऊंचे उठने दो !
मेरी मर्दानी आवाज़ आज सुर में है
कितना दक्ष निर्देशक !
कैसे चौकन्ने कान !
तुरंत पकड़ लेता है हर स्वर को संगति में चार की .
गाते हुए बार - बार
मैं बन जाती हूँ निपुण पेशेवर गायन में
पूरी तरह जोशीली
हा ले लुजः ....!


सिलवट रहित






दादी माँ के हाथ पर झुर्रियां हैं
ध्यान से देखती हूँ अपना हाथ
"ओह मेरा,इस पर भी हैं झुर्रियां! "
गहरी झुर्रियां
हर जोड़ पर
हो जाती हैं गायब जब करती हूँ बंद हाथ .
"त्वचा सिलवट रहित है "
त्वचा लपटी है मेरे हाथ पर
मात्र एक त्वचा लिपटी है हाथ पर !
जब मैं पलटती हूँ अपना हाथ
मेरी हथेली लगती है सपाट
जोड़ों पर हैं रेखाएं !
हतप्रभ मैं सोचती हूँ
मेरे हाथ की सतह
कोमल है और पतली !
यह एक सार है सिलवट रहित !
 

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