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Wednesday 19 December 2012

नई शताब्दी (२) / देसाकू इकेदा






जोड़ना व्यक्ति से व्यक्ति को और विचार से विचार को
प्लावन करना आगे -पीछे ,संस्कृतियों की धाराओं में,
जोड़ना सभ्यताओं को ,भूत को - वर्तमान को
ये हमारा संयुक्त प्रयास है !
आशा के किरण -जाल पर
गुम्फित बुद्ध के मानव प्रेम से
ऐसे आएगा सुप्रभात
नयी शताब्दी में प्रवेश का जिसमे
दमन परिवर्तित होगा स्वातंत्र में ,
पार्थक्य परिवर्तित होगा विलय में ,
और विरोध बन जाएगा सह-अस्तित्व!
सहजीवन !
मित्रों और साथियों से मिलने के लिए
मैं करता रहूँगा यात्रा सारे विश्व की
ताकि मेरी निष्ठां करे सृजन
परस्पर सामंजस्य मानव समाज में
यही है उद्देश्य सत्य और सौहार्द्र का !
यही है परिणाम अंतिम ,संभाषण का .
और पुनः संभाषण का ,अतः मिलाएं हम हाथ
सामना करने को चुनोती, इस शतक के शिखरों की !
करें अंतिम प्रयास सम्मलेन को सुखद बनाने का
आशा से परिपूर्ण ज्यूँ ज्यूँ हम अग्रसर हो,
एक सफल व समृद्ध संभाषण की ओर.






नियाग्रा / देसाकू इकेदा





हे नियाग्रा !
हे भव्य निर्झर !
कैसा विराट है तेरा दर्शन !
लाखों धाराएं मिल रहीं गरजते जल प्रपात में,
बिखरती, उछलती, उमड़ती !
समाहित होती निसीम प्रवाह में .
भीगी चट्टानों की काया पर चमचमाता सूर्य का प्रकाश .
दूरस्थ चोटियाँ आच्छादित कुहासे से !
प्रवाह का तीव्र आवेग कम्पित करता धरती के अन्तःस्थल को
प्रभावित करता झकझोर देता हर अस्तित्व को .
अबाध बढ़ता, रुकता न एक पल .
किनारे खिले सुन्दर फूल और मृणाल भी
लगते कम्पित, भयभीत !
मैंने देखा यह अनंत असीम गर्जन .
मंत्रमुग्ध मैंने देखा प्रकृति के भव्य वैभव को
जो जीवन के अनंत प्रवाह की भाँती
प्रकट होता, रहता स्पंदित, झंकृत !


भारत / देसाकू इकेदा





दूरस्थ भारत
अमर आत्मा की शांतिपूर्ण मात्रभूमि,
आकर्षित करती रही अगणित लोगों को
हर काल और हर देश में !
गेटे कहते हैं प्रभावित और प्रेरित हुआ था
पुरातन नाटक 'शाकुंतलम' से
अपनी कृति 'फाउस्ट ' रचने के लिए !
मनुस्मृति एक ग्रन्थ था उनमेसे
जो नीत्शे पड़ता था भाव-विभोर हो !
हेर्डर, शौपेनावर, वाग्नेर और हैसे
मंत्रमुग्ध थे भारत के ज्ञान प्रकाश से !
शाक्यमुनि का विषद आत्मज्ञान
दर्शाता विराट
अंतर्जगत मनुष्य के भीतर का ,
औरव्शाली उपलब्धियां
अशोक जैसे दार्शनिक सम्राट की
जिसने चाहा की साम्राज्य हो करूणा और शान्ति का
धर्म की आधारशिला पर !

अनुवादक: मंजुला सक्सेना

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