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Wednesday 19 December 2012

अकेला प्योनी





एक अकेला प्योनी
उजाला मेरे कमरे का !
पंखुडियां जैसे कोमल रेशम
हल्का सिंदूरी रंग
बड़े दो चक्रों वाले प्योनी के दल
जैसे हो एक सुंदरी मेरे कमरे में.
केवल एक प्योनी है
मेरे कमरे में ,
देखते ही शांत हो जाती हूँ मैं.
सुबह के समय
पंखुडियां कुछ ढीली सी हैं
पर यह अब भी खुश है
जैसे नाचती हो कोई सुंदरी !
यदि सुनें ध्यान से
समझ सकते हैं हम प्योनी की भाषा
"मैं सिर्फ खिलाना चाहता हूँ जब तक हो संभव ..
अपने अंदाज़ में,"
मुझे लिखना चाहिए प्योनी का सन्देश .
तीसरे दिन -
पंखुडियां मुरझा चुकी हैं
और फिर
गिरती जाती हैं एक एक कर ...

अनुवादक: मंजुला सक्सेना

क्षमा करना डन्डेलिओन / रित्सुको कवाबाता







गिरिजाघर से वापस आते हुए
मैं गुज़रती हूँ डन्डेलिओन के बगीचे से !
झूमते पीले फूल
आकाश तक गाते हैं बसंत आ गया ..
कितने सारे डन्डेलिओन ,
कहीं रह न जाए ,
अतः मैं चुनती हूँ - तीन ,पांच ..सात
एक जड़ समेत भी .
तुरंत घर पहुँच कर
एक छोटे से फूलदान में मेज़ पर
डन्डेलिओन , लगते है शर्माए
क्या बात है ?
तुम दुखी हो क्या ?
सूर्य डूबते ही पंखुडियां समेटे सो जाते हैं वे
क्षमा करना डन्डेलिओन
तुम खुश थे उसी बगिया में !

अनुवादक: मंजुला सक्सेना

गिलास में पानी उड़ेलने पर





सुबह के समय
तीन नारंगी रंग के अन्ड़ेदान
मेज़ पर
तीन उबले अण्डों के साथ .
मेरा प्रिय नाश्ता .

डेडी मेरे सामने बैठे हैं
ममा मेरे साथ ,
चलो शुरू करें ब्रेकफास्ट .
जैसे ही डेडी के गिलास में पानी डालती हूँ
अन्ड़ेदानी बड़ी होने लगती है .
गिलास के पार.
अंडे भी बढ़ने लगते हैं
जैसे उछल रहे हों कप से बाहर !
ऐ लडके !
जैसे ही मैं उड़ेलती हूँ पानी गिलास में
होता है ये जादू !

अनुवादक: मंजुला सक्सेना


एक भुजंग / रित्सुको कवाबाता

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योगाभ्यास की कक्षा में
मैं लगाती हूँ भुजंगासन
लेटकर पेट के बल
प्रबाहू झुका फर्श पर
निकाल कर सांस बाहर .
मैं उठाती हूँ अपना सर
ठोढ़ी आगे की तरफ
गिनते महसूस करते
एक पसली,दूसरी पसली
आखिर में छाती उठा कर .
मैं लेती हूँ एक सांस
घुमाकर सर को
देख पाती हूँ केवल घास और मिटटी !
सिकोड़ते व फैलाते हुए
अपने पेडू की पेशियाँ
रेंगती हूँ आगे .
मैं महसूस करती हूँ दुनिया नाग - दृष्टि से
मैं रेंग सकती हूँ मिटटी में ,
दूर रो रहा है कोई?
आरहा है कोई दो पैरों पर ?
वह नहीं देख सकता कुछ भी ज्यादा दूर .
वह नहीं देख सकता कुछ भी ऊपर .
भयभीत
नाग रेंगता है आगे
वृक्ष के सिरे तक .
वह लेता है सांस सारे शरीर से .
एक पल में ,
उसका गला फूलता है
चश्मे सी धारियां उसकी पीठ पर
बदल जाती हैं बड़ी बड़ी आँखों में .
वह सम्हालता है अपना सर
जो की लगता है
तेज़ हंसिया/दरांती सा
वह नाग की एक चाल है
एक छद्म वेश !

अनुवादक: मंजुला सक्सेना
 

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