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Wednesday, 19 December 2012

सुबह



गर्मी की शुरुआत ,
मैं खोलती हूँ खिड़की दूसरे तल पर,
सूर्योदय से पहले हवा ठंडी है .
और पुकारती है मुझे ,-उठो! जागो !
मैं शांत बैठ लेती हूँ गहरी सांस
निकाल सारी हवा एक निश्वास में ,
झुकती हुई आगे
धीरे धीरे !
अगले ही पल
मेरे हरे भरे बगीचे की ताज़ी हवा
बहकर भर जाती है सीने में .
फिर से निकलती हूँ बासी सांस धीरे धीरे
आगे झुकते हुए .
और ताज़ी हवा को अन्दर लेते हुए
जैसे खड़ी होती हूँ सीधे !
चीं -चीं, चूँ -चूँ
मैं निगलती हूँ
चिड़ियों के स्वर भी
मैं जी रही हूँ
अब !

स्मरण-शक्ति /






स्मरण-शक्ति
मैं ओजोनी के लिए सेरी पका रही हूँ ,
इसका एक हरा कोमल तना है
सफ़ेद नीचे से .
बैंगनी,हरी पत्तियां
जैसे ही काटती हूँ इसे चाक़ू से
खेतों की तेज़ खुशबू
बस जाती है हर ओर मेरे .
याद दिलाती उन दिनों की
मेरे अपने शहर की
लहलहाती सेरियां निर्मल जलधारा में ,
जोड़ती दो चोटियों को
सोप्पोरो में मदमस्त त्सुकिसमु पहाड़ की .
मेरे बचपन में
गयी थी मैं, माँ के साथ चुनने सेरियां
वह पहने थी किमोनो, हल्का भूरा धारीदार
अब सोचती हूँ की वह केवल
बत्तीस साल की थी तब .
हैरान हूँ मैं कि क्यूँ वह दृश्य
इतना पुराना
चौंध रहा है मस्तिष्क में !
कितने गहरे छपा है यह मेरी यादों में !


स्वयं से बात






स्वयं से बात
बहुत व्यस्त रही मैं
अंततः निबट गए सब काम
नहा सकती हूँ मैं अब
मलते हुए आराम से अपना शरीर.
रग - रग को रगड़ने से
कितना मैल निकलता है!
किन्तु ये हैं मेरी कोशिकाएं .
हैरान हूँ कि कैसे कोशिकाएं
लेती हैं पुनर्जन्म ?
दिन प्रति दिन .
बिना आभास दिए
नयी कोशिकाएं जन्मती हैं
पुरानी मर जाती हैं .
बाईबल कहती है ,-"तुम मिटटी हो
और मिटटी में मिल जाओगे "
सचुमच करती हूँ मैं विश्वास अब !

अनुवादक: मंजुला सक्सेना

होम रन



तड़ाक!
सफ़ेद गेंद उछलती है हवा में !
ज़ोरदार तालियाँ गूँजती हैं
ओह ओ ......
जब गेंद खो जाती है आकाश में .
दर्शक बौरा जाते हैं
लेकिन खिलाडी शांत है
ख़ुशी से झिलमिलाता !
काश लगा पाती मैं एक होम-रन ,
अगर मिलता मौका मुझे भी
मैं उछलती बल्ले को
अपनी पूरी ताकत से !
 

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