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Wednesday 19 December 2012



बिगुल बजाते फूल
एक गमले में
जैसे हो प्रहरी
मेरे द्वार के !
चार बिगुल बजाते फूल
उभरते पत्र्चक्रों से
बड़े , श्वेत
लटक रहे हैं नीचे !
"सुप्रभात "
जैसे बहता है पानी धीरे धीरे
मेरे फब्बारे से !
बिगुल बजाते फूल भर जाते हैं नई स्फूर्ति से
यही ऊर्जा समां जाती है मुझ में
वे लगाते हैं मेला शहनाइयों का
हाँ यह शुरुआत है एक नए दिन की  !



बिना मूंछों वाली बिल्ली / रित्सुको कवाबाता



मैं बन जाती हूँ बिल्ली
दिन में एक बार !
चेहरा नीचे ,
हथेलियाँ फर्श पर ,
मैं तानती हूँ अपनी बाहें .
मैं बन जाती हूँ समुद्री शेर
'उठाकर अपने नितम्ब
मैं डालती हूँ सारा भार पीछे को .
मैं बन जाती हूँ एक ऊंट
बाहें पसारे
छूती है थोड़ी फर्श .
मैं सचमुच की बिल्ली नहीं हूँ ,
मेरे नहीं है बिल्ली सी मूंछ
लेकिन मैं बड़ी खुश हूँ ,
सोचकर की मैं बिल्ली हूँ ..
म्याऊं ....!


मछली बन कर



मैं लगाती हूँ मत्स्यासन योगाभ्यास में
लेट पीठ के बल
तान कर शरीर.
सिरे मेरी टांगों के
हैं पूंछ और पंख मछली के .
में मोड़ती हूँ बाहें ,
मेरे उँगलियों के पोर हैं आगे के पंख
झुकते हुए पीछे ठोड़ी उठा ऊपर .
छूता है मेरे सर का केंद्र
धरती को .
अकस्मात
देख सकती हूँ पीछे .
"अहा ,मैं देख सकती हूँ आगे .."
अनजाने ही मैं बन जाती हूँ मछली
तैरती फिरती नदी में .
मेरा सर घूमता है फुर्ती से
आगे बढ़ता सरलता से .
मैं हिलाती हूँ अपनी दुम और पंख
बढ़ते हुए आगे तेजी से .
लहराओ दायाँ पंख,मुढ़ जाओ बाएं .
पानी से होकर आता प्रकाश
झिलमिला कर नाचता है .
एक चिढिया उड़ बैठती है पेड़ पर
वह घूरती है नदी में .
ओ ! वह देख रही है मुझे !
मैं तैर जाती हूँ अँधेरे में .
पानी में उगे पोधों के नीचे डर कर .
कोई देख रहा है नीचे ..
मुझे पानी के अन्दर ..
मुझे लगता है जीना धरती पर
बेहतर है जीने से पानी मैं .
पंख बन जाते हैं फिर से हाथ-पैर ,
और खड़े होकर
मैं बढ़ाती हूँ कदम सशक्त .

यह अद्भुत है -
मैं हूँ एक मानव

अनुवादक: मंजुला सक्सेना

मेरा चेहरा






हर सुबह
मैं देखती हूँ दर्पण में अपना चेहरा
कैसा विलक्षण है यह !
काले रेशमी बाल, छाये सर पर
दो आँखे,झरोखे आत्मा के
पलकें,खुलने -बंद होने को मुक्त
घनी भोंये आँखों का सटीक ढक्कन
ऊंची उठी नाक बीन्चों- बीन्च
मूंह जैसे पंखुड़ी गुलाब की
कान सजे दोनों ओर !
आँखे कहती हैं -यह दीखता है सुन्दर
नाक कहती है -यह गंध है अद्भुत
जीभ कहती है -यह स्वाद है बढ़िया
कान कहते हैं -यह आवाज़ है मधुर !
बाईबिल कहती है कि-
इश्वर ने बनाया मानव को
अपने जैसा .
कितनी बढ़िया रचना है
मेरा चेहरा !

अनुवादक: मंजुला सक्सेना

मोर्निंग ग्लोरी



सूर्योदय से पहले
जाते हुए पत्र पेटी की ओर
हूँ आनंदमग्न शांत शीतल पवन के !
एक नन्हा बैंगनी फूल
शाखा पर
शहनाई बजाता स्वागत में नए दिन के !
एक नन्हा लाल फूल
बजाता है धुन जीवन राग की !
इन सुबह के क्षणों में
मोर्निंग ग्लोरी के साथ
मैं गा रही हूँ
सुबह का राग !

रुपहले डन्डेलिओन 



नहाये झुटपुटे के प्रकाश में
रुपहले रंग के डन्डेलिओन
प्रस्फुरित करते हैं कुछ
हर मैदान में .
'अहा मैं फैला रहा हूँ पांख
अपने सर पर
खूब झबरीले .
'तुम भी ?क्या नहीं ?"
"अहा, मैं भी ?"
"हम क्यों बदल रहे हैं ?"
"लगता है मैं उड़ सकता हूँ !"
"क्या मैं उडूँ?"
उसी पल ,
एक स्वर गूंजता है स्वर्गलोक से ,-
"जब हवा बहती हो ,
हो जाना सवार उस पर !"
झबरीले डन्डेलिओन
कर रहे हैं प्रतीक्षा हवा की
धड़कते दिल से !

अनुवादक: मंजुला सक्सेना

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