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Wednesday 19 December 2012

घूरना एक बिंदु को / रित्सुको कवाबाता

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मैं करती हूँ योगाभ्यास
बन जाती हूँ एक सारस !
मेरी फैली बाहें हैं पंख
खड़ी हो कर बायीं टांग पर
बाहें ऊपर-नीचे फड़फदाती
बनाने को संतुलन !
एक बिंदु दीवार पर
गति हो जाती है बद्द जैसे ही
मेरी दृष्टि जमती है !
जमाये दृष्टि उस बिंदु पर
लम्बे समय तक
मैं हूँ एक सारस !

अनुवादक: मंजुला सक्सेना

चीशें की पूं / रित्सुको कवाबाता

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चीशें बच्ची है दो साल की
चेहरा गोल जैसे कि - चाँद ,
आँखों में कौतूहल !
रविवार के भोजन के बाद का मौन
टूटता है अकस्मात
'पूं....."
मैंने नहीं किया कहती है बहन
हर बड़ा दबाता है अपनी हसीं
चीशें कि गोल आँखे पूछती हैं
सब क्यूँ हंस रहे हैं ?

अनुवादक: मंजुला सक्सेना

ज्वार / रित्सुको कवाबाता

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ज्वार पुरे जोर पर है अब ,
विचार उफनते हैं ,
गहनता से मस्तिष्क में .
बन जाते हैं लहर प्रचंड .
शब्द उमड़ते हैं
ज्वार पूरे जोर पर है अब
यही समय है सही !

अनुवादक: मंजुला सक्सेना

टूटने पर / रित्सुको कवाबाता

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फटाक !
मेरी प्रिय कांच की चायदानी
प्योनी और हरे पत्तों के साथ
टूटी पड़ी है !
मात्र एक दंपत्ति के मतलब की
पुरानी यादें गत दस वर्षों की
आनंद लिया हर दिन इसकी खूब्सूरती का
थामे इसे अपने हाथों में,
दुःख है इसके खोने का .
ऐसी बढ़िया चायदानी
नहीं मिलेगी फिर ,
लेकिन खोजनी पड़ेगी नई,
टूटना किसी चीज़ का बुरा नहीं है इतना
यह अवसर है
नए के आने का !

अनुवादक: मंजुला सक्सेना

नन्हा सा ठीकरा / रित्सुको कवाबाता

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नन्हा गोल ठीकरा
मेरी निधी
स्कूल के रास्ते की !
केवल एक नन्हा गोल ठीकरा
बिलकुल सही खेलने को पांव-टिक्के का खेल .
एक जोर दार ठोकर से
लुडकता है ,पुडकता है ,ढुलकता है
तेज और,और तेज
नन्हा गोल ठीकरा .
और ज्यादा ठोकरों से
रुक जाता है गली में!
मुझे दीखता है अब स्कूल का गेट
खेल ख़तम !
मेरी जेब में दुबक जाता है
मेरा नन्हा गोल ठीकरा !

अनुवादक: मंजुला सक्सेना

नाख़ून / रित्सुको कवाबाता

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कितनी जल्दी मेरे नाख़ून जाते हैं बढ़ ?
कब काटा था पिछली बार इन्हें मैंने ?

मैं नहीं खाती कभी खाना
इतनी मेहनत से जैसे के नाख़ून .
मैं खाती हूँ मछली
रोज़ और एक गिलास दूध
मेरी माँ बताती है मुझे
इससे होती हैं हड्डियाँ मज़बूत
कैसे मेरा शरीर
बदल देता है इन चीज़ों को
ऐसे सख्त नाखूनो में?

अनुवादक: मंजुला सक्सेना
 

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