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Wednesday 19 December 2012

पुनरावृत्ति / रित्सुको कवाबाता

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"अंतर्राष्ट्रीय मानसिकता जगाओ "
मैं कहती हूँ अपने पुराने विद्यार्थियों से
सेवा निवृति के बाद
शुरू किया मैंने पढ़ना अंग्रेजी .
एक दिन कक्षा में ,
देखा मैंने हवाई-जहाज़
"आई ?"
नहीं "ऐ".
अकस्मात कोई तार मेरे दिमाग का
जुड़ जाता है पुरानी यादों से .
गूँजती आवाजें
एक स्कूली बच्ची क़ी आवाज़
"ऐरो- ऐ, इ, आर, ओ,
प्लेन -पी,एल ,ऐ ,एन ,ई .."
लिखने में -
ऐ, इ, आर, ओ,
पी,एल ,ऐ ,एन ,ई .."

बोलने में -
एरोप्लेन .
आहा इस तरह
मैं सीखती हूँ शब्द मन लगा कर
जोड़ कर यादों से
उभरती है ज्ञान की बातें
जैसे के कंप्यूटर से !

अनुवादक: मंजुला सक्सेना

पुलकित गमन / रित्सुको कवाबाता

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सिंदूरी केमिल्या बिखरे
गली में ,
मन करता है फुदकूँ
फूलों पर !
फूलों की झाडी
कलियों से लदी
उमगती है हर्षोल्लास से !
निहार कर नीलाकाश को
ज़ेल्कोवा वृक्ष के पार ,
पत्तों के पंख करते प्रस्फुरण
महसूस करती हूँ स्फूर्ति
वृक्ष के सशक्त स्कंध से !
आह गमन पुलकित !
सुनते हो क्या प्रकृति को ?
फूलों के स्वर ,
वृक्षों के प्रस्फुरण?
पहले रविवार की सुबह ,
बसंत ऋतु में
जाते समय गिरिजाघर!

अनुवादक: मंजुला सक्सेना

पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण / रित्सुको कवाबाता

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बसंत का नवागमन ,
मैं हूँ आरोहण पर सागर के अतुल वैभव में,
बड़ते हुए पोत में दक्षिण की और गौम से .
आकाश फैलता जा रहा है शांत चुपचाप
सागर हो रहा है विशाल अंतहीन
आच्छादित गहरे नीले फेन से
जैसे हो काया किसी जलचर की !
क्या सचमुच सागर मात्र जलराशि है ?
मैं कड़ी हूँ छज्जे पर पोत के
पृथ्वी तल से अट्ठारह मीटर परे
मैं हूँ बाहर पृश्वी से .
क्षितिज है एक विशाल वृक्ष
सागर नहीं है समतल .
जमघट जल;बूंदों का बना रहा वक्र
क्यों नहीं उफनता जल ऊपर ?
कैसा अद्भुत है पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण !
मैंने जाना था मात्र शब्दों में .
अब,
विश्वस्त हूँ मैं इस नैसर्गिक प्रक्रम को
देख अपनी आँखों से !
मैं हूँ जहाज में बिलकुल बीच
दक्षिण प्रशांत महासागर में
अक्षांश १४४ पूर्व
देशांतर १२ उत्तर पर !

अनुवादक: मंजुला सक्सेना

बादल में साईकिलिंग / रित्सुको कवाबाता

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मुझे भाता है साइकिल चलाना सुनहरे दिन में
चलाते हुए साइकिल तेजी से
मेरी आँखें जैसे हों एंटीना .
मैं मारती हूँ पैडल ताबड़तोड़
पूरे जोशोखरोश से
एल्म वृक्षों की कतार जाती है पीछे छूट!
पास आते ही हरे मैदान के
हो जाती हूँ धीमे, लेने विश्राम.
क्या धकेल रहा है मुझे ?
यह हवा है ..
महसूस करती हूँ हवा अपने पीछे .
मुझे भाता है साइकिल चलाना
किसी सुनहरे दिन में
बैठना मैदान में .
पोंछते हुए बहता पसीना .
उसी पल
एक जेट गरजता है ऊपर
छोड़ते हुए पीछे सफ़ेद लकीर
नीले आकाश में .
काश मैं चला पाती साइकिल आकाश में
बैठकर साइकिल पर गुजरती आकाश से
कैसे दिखेंगे बादल जो उमड़ेंगे
गहरे नीले आकाश में ?

अनुवादक: मंजुला सक्सेना
 

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