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Saturday, 23 February 2013

कुरुक्षेत्र

Your soul is oftentimes a battlefield,
upon which your reason and your judgment
wage war against your passion and your appetite.
Would that I could be the peacemaker in your soul,
that I might turn the discord and the rivalry
of your elements into oneness and melody.
But; how shall I, unless you yourselves
be also the peacemakers, nay,
the lovers of all your elements? ~ Kahlil Gibran
आत्मा तेरी  खड़ी  कुरुक्षेत्र में अक्सर 
तर्क और निर्णय की शक्ति जहां पर 
छेड़ती  है  युद्ध मद , भोग - लालसा से 
बन सकूँगा क्या मैं शान्ति दूत आत्मा का 
बदल पाऊंगा क्या द्वन्द, प्रतिस्पर्धा को 
तुम्हारी वृत्तियों को  एकता ,स्वर -संगति  में .
किन्तु कैसे मैं अकेला ही करूँ यह यदि न तुम ही 
बनो शान्ति - दूत अपने लिए ही ,न .. न ..
प्रेमी सारी वृत्तियों के ?

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