प्यार जब करता हूँ मैं लगता सम्राट हूँ समय का है धरा मेरी , सभी मेरा है जो भी है ..और जैसे होके घोड़े पे सवार ,भेद सकता सूर्य को ..
प्यार जब करता हूँ मैं जैसे ज्योति हो तरल दीखती न आँख को जो
कविता मेरी डायरी में
जैसे खेती छुई मुई और भांग की हों .
प्यार जब करता हूँ मैं उमड़ता ज्यूँ जल उङ्गलि के पोर से उग गयी हो घास जैसे जीभ पर प्यार जब करता हूँ मैं समय से दूर हो जैसे समय प्यार जब करता हूँ मैं प्रेमिका से वृक्ष जैसे दौड़ते मेरी तरफ पाँव
नंगे
प्यार जब करता हूँ मैं जैसे ज्योति हो तरल दीखती न आँख को जो
कविता मेरी डायरी में
जैसे खेती छुई मुई और भांग की हों .
प्यार जब करता हूँ मैं उमड़ता ज्यूँ जल उङ्गलि के पोर से उग गयी हो घास जैसे जीभ पर प्यार जब करता हूँ मैं समय से दूर हो जैसे समय प्यार जब करता हूँ मैं प्रेमिका से वृक्ष जैसे दौड़ते मेरी तरफ पाँव
नंगे
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