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Monday, 4 August 2014
Sunday, 3 August 2014
जानती नदिया है
"I used to know my name.
Now I don't.
I think a river understands me.
Now I don't.
I think a river understands me.
For what does it call itself in that BLESSED
moment when it starts emptying into the
Infinite Luminous Sea,
moment when it starts emptying into the
Infinite Luminous Sea,
and opening every aspect of self wider than
it ever thought possible?
it ever thought possible?
Each drop of itself now running to embrace
and unite with a million new friends.
and unite with a million new friends.
And you were there, in my union with ALL,
everyone who will EVER see these words."
everyone who will EVER see these words."
~ Hafiz.
"पता था नाम अपना कभी
अब नहीं है .
जानती नदिया है शायद मुझे
क्यूंकि कहती है क्या वह उस मंगल
क्षणों में जब हो जाती खाली
झिलमिल असीम जल में सिंधु के ,
औ खोल देती अपना सभी कुछ पसर तब
सोचा था क्या होगा संभव ?
बूँद बूँद इसकी दौड़ती लगने लगे
एक होने से नए आशिकों से
औ तू था वहां ,मेरे सब में मिलन में ,
हरेक वो जो देख लेगा शब्द ये ."
"पता था नाम अपना कभी
अब नहीं है .
जानती नदिया है शायद मुझे
क्यूंकि कहती है क्या वह उस मंगल
क्षणों में जब हो जाती खाली
झिलमिल असीम जल में सिंधु के ,
औ खोल देती अपना सभी कुछ पसर तब
सोचा था क्या होगा संभव ?
बूँद बूँद इसकी दौड़ती लगने लगे
एक होने से नए आशिकों से
औ तू था वहां ,मेरे सब में मिलन में ,
हरेक वो जो देख लेगा शब्द ये ."
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